दिल फुर्सत के दिन और रात में बार-बार ढूंढता है,
प्यार के ख्यालों में बैठा रहता है।
दिल फुर्सत के दिन और रात में फिर से खोजता है,
या गर्मियों की रातों में जब पुरवाई हवाएं चलती हैं।
ठंडी सफ़ेद चादर पर देर तक जागना,
गाती रहती हूं तुम्हारी यादों में।
याद करते बचपनापन और बेवकूफियां,
छत पर लेटे हुए तारों को देख रहा हूँ।
ओ, धूप में जलते हुए तन को,
छाया पेड़ की मिल गई।
रूठे बच्चे की हँसी जैसे फुसलाने से फिर खिल गई,
अभी मुझ में कहीं बाकी थोड़ी सी है ज़िंदगी।
जगी धड़कन नई, जाना ज़िंदा हूँ मैं तो अभी,
दिल दिन-रात उसी फुर्सत की तलाश में रहता है।
मैं अकेला हूँ, तुम जहां भी हो आ जाओ,
मैं तुम्हें कहां बुलाऊं, तुम कहां हो?
हम तुम्हें ढूंढ़ते हैं, हमारा दिल हमें ढूंढ़ता है।
अब न कोई मंजिल है, न कोई रास्ता।
अकेलेपन की यह स्थिति और उस पर आपका दुःख,
न जियो न मरो, बताओ क्या करें?
दिल ढूँढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन,
बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए दिल ढूँढता है।
फिर वही फुर्सत के रात दिन...
या गर्मियों की रात, जो पुरवाईयाँ चलें,
ठंडी सफ़ेद चादरों पर जागें देर तक।
तारों को देखतेओ, धूप में जलते हुए तन को,
छाया पेड़ की मिल गई।
अंधकार से अब घिरी यह दुनिया,
अभी भी पता नहीं कहाँ छुपी है खुदाई।
अब बची बची है यह लम्हा कहाँ,
कहाँ था वो रंगीन वक्त का मौसम?
सोचिये, क्या करें, मृतक नहीं, जीते भी नहीं,
इस अकेलापन के अंधेरे में, कहाँ ढूंढें आराम?
अब तुम मुझसे कहो, मृतक नहीं, जीते भी नहीं,
वह लम्हा कहाँ था, कहाँ छुपी थी वो बात?
चलो, एक कहानी बुनो, एक गाना गाओ,
शब्दों और वाक्यों में बसाओ अपनी आत्मा को।
अकेलापन की यह सरगम, हमें मिले सुकून,
बेशबाब रचें, प्यार की कहानी सुनायें।
जब तक एक-दूजे के दिल नगमा बजाते हैं,
हम उम्मीदों के संगीत में नाचेंगे, जीने की तरणाएं सजायें।
इस अकेलापन की सरगम में हम देखेंगे,
अनन्त खोज, स्वतंत्रता की तलाश करेंगे।
अकेलापन की ये बिस्तरी, हमें विश्राम दिलाएगी,
अस्तित्व की छाप, आज़ादी की मांग पहुंचाएगी।
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