मैंने एक अजीब तथ्य के बारे में पढ़ा है कि, वियाग्रा, जब पानी में घुल जाता है, तो कटे हुए फूलों को आम तौर पर एक सप्ताह से अधिक समय तक खड़ा कर सकता है। तथ्य संख्या दो- वियाग्रा जेटलैग का इलाज कर सकती है। वे कहते हैं कि यह आपके दिल के लिए अच्छा है। इस जादुई छोटी नीली गोली ने दुनिया भर के लाखों पुरुषों और महिलाओं को एक पूर्ण यौन जीवन का समर्थन करने के लिए अपनी ताकत पर काबू पाने में मदद की है जनाब। जल्द ही, कोरोना काल के दौरान घर पर बैठे वेले लोगों ने बाज़ार में इस जादुई दवा की अप्रत्याशित बाढ़ भी देखी, क्योंकि निर्माता इस गोली के एक टुकड़े के लिए होड़ कर रहे थे। बिल्कुल शराब की तरह। काश हमारे पास जिंदगी सुधारने के लिए भी वियाग्रा होता। यहीं काश पर अटकी है।
😂👍याहू...आप सबको मेरी यह बात थोड़ी सी हैरत एंगेज और पागलपन भी लगे। मगर मेरे प्रिय पाठकों मानो या ना मानो। कृपया मेरी बातों पर विश्वास करें।यह मेरे लिए भी एक नई और अचंबा खोज है।जो सत्य भी है। निश्चित रूप से सभी को इसे कम से कम एक बार आजमाने की तो जरूरत है! काश हम इंसान भी ऐसे होते।चूंकि इससे उन्हें उत्तेजना के प्रति बेहतर प्रतिक्रिया करने में मदद मिलती है। यदि केवल, हमारे पास भी उस तरह की सुविधा है जो प्रतिदिन हमारी उत्तेजना को बढ़ावा देती है।तो कितना अच्छा होता हैना। यह तथ्य मन को झकझोर देने वाला है।है ना। तो, इसका मतलब है कि उत्तेजना कई अलग-अलग स्रोतों से आ सकती है, यहां तक कि गहन सोच से भी। उत्तेजना की हमारी आवश्यकता और मस्तिष्क पर डोपामाइन की क्रिया जुड़ी हुई है, जो बताती है कि जो लोग लगातार हमारे मन की स्थिति को ऊपर उठाने के लिए उत्तेजना चाहते हैं। यह लगातार आता है मेरे विचार से सभी को वह भोजन मिले जिसकी उन्हें आवश्यकता है, वे जो सुख चाहते हैं, और वे एक असंतुष्ट मन की पीड़ा से राहत प्राप्त करें।
जब जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है और किनारे हो जाता है, तो हमको एक और सांस लेना इतना कठिन हो जाता है, तथा अर्थ खोजने की तो बात ही छोड़िए। उस दौरान हम महसूस करते हैं छाती में ऐसा तीव्र दर्द, की हर इकाई आप क्या महसूस और अनुभव कर रहे हैं। वह बस स्पर्श बन जाती हैं । मुझ पर विश्वास करो। मैं यह इसलिए कह रही हूं क्योंकि में जानती हूँ। मैंने भी यह जीवन में महसूस किया हैं।
हमारा जीवन भी एक प्याज़ की तरह होती है।हम इंसान बिल्कुल प्याज की तरह हैं, क्योंकि "हमारे पास परतें हैं"... हमारे मूल के चारों ओर कई, कई परतें हैं। वह भी झूठी परतें जो हमने खुद बनाई हैं।आप इसे एक के बाद एक परत से छीलते हो!और मनुष्य के रूप में, हम हर समय अपने ऊपर से परतें उतारते रहते हैं। जरा उस व्यक्ति के बारे में सोचें जो आप एक साल पहले, या दो साल पहले, पांच साल पहले थे - क्या आप उन्हें पहचानते भी हैं? हमारे पास एक सर्वोत्कृष्टता के शीर्ष पर कई परतें होती हैं जो कि बहुत गहरी होती हैं। और जब प्याज़ सड़ता है तो लोग उससे दूरी बनाते हैं। हमारा लोकाचार विश्वसनीयता के बारे में है और यह सद्गुण के लिए आधार बनाता है। और हम सब अपनी भावनाओं को दबाने और छिपाने में इतने अच्छे हैं। बाहरी पहली परत एक मुखौटा की तरह है। आमतौर पर लोग रोजाना अपने चेहरे पर मास्क लगाते हैं। जब वे दूसरों के साथ बातचीत करते हैं तो कुछ निश्चित तरीके से लोग व्यवहार करते हैं और प्रकट होते हैं। दूसरी परत वह है जहां मुखौटा उतार दिया जाता है। हमारे पास हमारा असली चेहरा है कि केवल हमारे पहले पारस्परिक अंतर्संबंध ही हमें जानते हैं। हम दूसरों से जो प्राप्त करते हैं उसका भुगतान करते हैं। तीसरी परत वह गहरी परत है, जिसे केवल लोग ही जानते हैं और खुद तक पहुंचते हैं। यह वह जगह है जहां वे अपनी भावनाओं, विचारों, इच्छाओं, भयों को छुपाते हैं, कोई भी नहीं पहुंच सकता है। लोगों के पास उन्हें बाहर लाने या अपने पास रखने का विकल्प होता है। यह वह परत भी है जहां लोग अपने दिल, प्यार, निराशा, बोझ छुपाते हैं। इसलिए इसे दिल का तल कहा जाता है। यहां अस्तित्व का केंद्र है जो हमें बनाता है। यह परत जीवन भर के रिश्तों और एक दूसरे के लिए मजबूत विश्वास का स्रोत है।और फिर,एक और परत है जो सबसे गहरी और छिपी हुई है जिसके बारे में लोग खुद भी नहीं जानते हैं या नहीं जानना चाहते हैं।
मेरे नजरिए से लोगों का विश्वास जीतना और उनका दिल जीतना उनसे अनुबंध या व्यापारिक सौदों को जीतने से ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसी तरह हमें भी भगवान का विश्वास जीतने की जरूरत है।माना की ज़रूरी नही की हमारी आवाज उन तकजाएगी।मगर जीवन मे मैंने सीखा है,कठिन परिस्थियों में अक्सर और बार-बार तनावपूर्ण घटनाओं का सामना करने के बाद हममें असहायता विकसित होती है। फिरभी अपने आप को स्थिर खड़ा रखना ज़रूरी हैं।अपने लिए नही,मगर अपनों के लिए हि सही।इस बीच यह भी एक कड़वा सच हैं की हम अपने लिए समय निकालना भूल जाते हैं।मेरा भी कुछ यही हाल है। यह मेरी व्यक्तिगत सोच है कि, जब एक बार एक बुरी भावनात्मक पीड़ा होती है, दो बार किसी का भयानक भाग्य होता है, लेकिन तीन बार या अधिक व्यक्ति का दुर्भाग्य होता है। असंख्य बुरे भाग्य हमारे सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बर्बाद कर देते हैं। यह वह समय होता है जब हम जो कुछ भी करते हैं या सोचते हैं वह सिर्फ एक तरह की पराजय है, और तब ऐसा लगता है कि हमारा जीवन ढलान पर जा रहा है, जिससे हमें बहुत दुख होता है। दुर्भाग्य हमारी खुद की गलती से नहीं आया। बहुत से लोगों का उतना दुर्भाग्य नहीं हुआ जितना मेरा है, लेकिन बहुत से लोगों को उतना सौभाग्य भी नहीं मिला है। मैं अपने आप को दुर्भाग्यपूर्ण मानती हूँ। हम सब उस भाग्य और दुर्भाग्य के साथ पैदा हुए हैं। हम सभी पहले से ही तैयार पूर्वनिर्धारित भाग्य के साथ आते हैं। और शायद वही हमारी जीवन रेखा होती हैं,जिसपर न चाहकर भी मजबूरन चलना ही पड़ जाता हैं हम,ठीक वैसे ही जैसे सिर पर डमोकल्स की तलवार लटकी हुई हो।जिसको झेलना ही पड़ता हैं। इसका मतलब है कि हम ऐसी स्थिति में हैं जिसमें हमारे साथ कभी भी कुछ बहुत बुरा हो सकता है। और, यहाँ तलवार मनुष्य की नियति है जो शक्ति, सुरक्षा, अधिकार,प्राधिकरण और साहस का प्रतीक है।
मैं रोज तीन से चार बार आईने में देखती हूं, मेरे पास अच्छी चीजें हैं, और खामियां भी हैं। यह तथ्य को रोज देखती हूं उस दौरान आइने में।तो क्या?मैंने खुद को देखा है कि अगर चीजें वही रहती हैं, या लंबे समय तक मुश्किल से बदलती हैं, तो मैं ऊब और सुस्त हो जाती हूं। कई बार मैंने महसूस किया है कि,हमारा जीवन ब्लॉगिंग के समान है। यदि आप अपना ब्लॉगिंग सही करते हैं, तो समय और धन का निवेश इसके लायक है। जिंदगी के बारे में जितना लिखो उतना ही हर बार कुछ अलग ही लिखती हूं।
हमारे जीवन में कई घटनाएँ इतनी शर्मनाक होती हैं। जिसे सोचते ही शर्म आ जाती हैं।यह एक पूर्ण तरह से उपद्रव बन जाता है।हमारी निसहायता का दर्मशन होती है तब।दिल और दिमाग में खटास और दुख भर जाता हैं। तब विचार में आता हैं।मेरे तो कई दोस्त हैं। स्कूल कॉलेज और दफ्तर के भी।लेकिन, फिर एहसास होता हैं कोई अच्छा सच्चा दोस्त नहीं है। फिर आंखे बंद करती हूं ,और घर के पास रहने वाली सहेलियां याद सताती हैं। नीरस मन के साथ,सिर्फ बचपन की वही दो सहेलियां याद परेशान करती हैं।क्या दिन हुए करते थे वोह भी।क्या से क्या बन गए हम।
कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि मेरी समस्याओं,भावनाओं और विचारों के बारे में बात करने के लिए भी मेरे पास कोई नहीं है।मैं व्यक्त नहीं कर सकती, हर बात को दिल में बंद और दबाकर रखना भावनात्मक रूप कितना अधिक तनावपूर्ण और तकलीफ दएं हो जाता है।क्यूं हर बार सबके सामने जबरदस्ती मुस्कुराना पड़ता है और ऐसा अभिनय करना पड़ता है जैसे सब ठीक है जीवन में। क्यूं कहना पड़ता हैं की सब खुशहाल हैं जीवन मे।उन दर्द भरे पलों में।मैं उस अवधि में बुरी तरह असहाय महसूस करती हूँ और दूसरों के साथ अपने विचार नहीं प्रकट कर पाती.. यह वो पल हैं जब मैं चाह कर भी रो नहीं पाती। उस क्षण मैं तब अपने आप को गले लगा लेती हूँ। और मुझे अंदर से रोते हुए भी मुस्कुराना पड़ता है।सिवाए स्वयं ईश्वर के।और उनसे क्षमा मांगते हूं। उन गलतियों के लिए भी जो मुझे मालूम ही नहीं।मैं चाहूं तो भी अपनी परेशानी किसी से साझा नहीं कर पाती।वास्तव में हम नहीं कर सकते।तो करें तो करें भी क्या आखिर? यह एक सवाल गूंजता रहता है मस्तिष्क में।
कहा जाता हैं की हम इंसान और गिरगिट काफी हद तक स्वभाव और प्रकृति में एक ही तरह हैं।क्योंकि मनुष्य का स्वभाव उस बहुरुपी गिरगिट के समान है। अब हम किस किस जैसे हैं वह तो सिर्फ सर्व शक्तिमान ईश्वर ही सीखा सकते हैं ।हम मानव को एक पालतू जानवर के रूप में रखने के लिए व्यापक माना जाता है। गिरगिट कितने भाग्यशाली हैं, वे हम मनुष्यों जैसे कई ज्ञात भावनात्मक तनावों से पीड़ित नहीं हैं। हम अपने रंग और अपने नैतिक चरित्र का रंग अपने आसपास के लोगों से लेते हैं। जैसे, अगर कोई हमारे खिलाफ झूठे आरोप लगाने लगे या हमारे भरोसे को धोखा देने लगे और हमारी ईमानदारी और मूर्तता पर सवाल उठाए, तो हमें इसे एक के रूप में मानना चाहिए। हमारे जीवन में आने वाले बुरे समय का संकेत है।
ऐसी घटनाओं को हमारे जीवन में आने वाले बुरे समय का संकेत माना जाना चाहिए।ज्यादातर समय ये स्थितियां हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं और दर्दनाक हो जाती हैं। मैं अविश्वसनीय रूप से बुरी किस्मत वाला व्यक्ति हूं, जिसने लगातार और बार-बार एक ही तरह के दुर्भाग्य, दुर्व्यवहार, खराब स्वास्थ्य को सहन किया है और मुश्किल वित्तीय कठिनाइयों को इस तरह महसूस किया। मैं बहुत लंबे समय से इस भावनात्मक पीड़ा का अनुभव कर रहीं हूं... फिर भी मैं खुद को ऊपर उठाने की पूरी कोशिश कर रहीं हूं। हमें कभी पता नहीं चलता कि जीवन में आगे क्या होने वाला है। मैं अब अपाहिज महसूस कर रहीं हूं। आजकल मुझे एहसास होता है कि मैं जिंदगी में भटक रही हूं। अपने आप को समझाते समझाते थक गयी हु । अपने आप को दिलासा देते देते थक गयी हूँ । मैं हर समय अपने आप को आराम और सहानुभूति देते हुए थका हुआ महसूस कर रही हूं। मैं खुद को सकारात्मक रहने के लिए कहता और अनुरोध करती रहती हूं। लेकिन अब मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं ऐसा करने में असफल हो रही हूं। चूंकि हमें कभी पता नहीं चलता कि जीवन में आगे क्या होने वाला है। मैं अब अपाहिज महसूस कर रही हूं। आजकल मुझे एहसास हो गया है, जैसे जीवन में भटक रही हूँ। और इक ज़माना हो गया ख़ुद से मुझे लड़ते-झगड़ते।खुदको समझते और समझाते भी एक ज़माना निकल गया है मेरे प्यारे दोस्तों मुझे। क्या ऐसा आपको भी महसूस होता हैं कभी कभी।
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है।और कभी-कभी रात की अंधेरी घंगोर खामोशी में एक उल्लू की आवाज़ कमरे कि कोठरी की घुटन को कुछ कम कर देती थी। और कभी कभार मन का थक्कन और मंथन भी काम कर देती है । रात बेहद अंधेरी और बेजान लगती है क्योंकि आसमान में कोई तारे नहीं दिखाई देते। इतनी अंधेरी रात।ऐसा लग रहा है कि मैं एक मृत रात में बिना सितारों के स्कूबा डाइव के लिए जा रही हूँ। जहाँ मैं न तो देनदार हूं और न ही मैं कर्जदार हूं। न मैं क्रेता हूं और न ही मैं विक्रेता हूं। वर्तमान में, मेरी मनःस्थिति एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गई है, जहां कुछ भी और सब कुछ हमेशा के लिए चला जाता है। कमी के कोई संकेत नहीं होने के कारण, हम में से अधिकांश अब कोरोनोवायरस संकट के दौरान क्षितिज पर काले बादलों के साथ एक अंधकारमय भविष्य के लिए इस्तीफा दे चुके हैं।
लेकिन कभी-कभी,कभी कभी नही ज्यादातर मेरे जैसे लोग जीवन में फंस जाते हैं और स्थिर हो जाते हैं। तब जब तलब हमारा दुःख तीव्र बना रहता है, और हम बहुत अधिक कष्टों के कारण आगे नहीं बढ़ पाते हैं। आज हमारे लिए कठिन है, कल और भी बुरा होगा।जीवन नाजुक है। जीवन की संक्षिप्तता है, यानी, आप आज यहां हैं, और कल जा सकते हैं! शायद, यही सर्वशक्तिमान ईश्वर का न्याय है।
ज़िन्दगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं,जो मकाम वो फिर नहीं आते,वो फिर कभी नहीं आते।
यह गाने का पंक्ति याद आई मुझे।जो जिंदगी क्या हैं सिखाती हैं हमें।
की कमजोरियों को छुपाने से ताकत सामने नहीं आती। मेरा यही मानना है। यह असुरक्षा को दर्शाता है। हम चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, जो लोग हमें अच्छी तरह से जानते हैं उन्हें हमारी खामियाँ नज़र आएँगी। और यही एकमात्र तथ्य है। क्या आपने कभी सोचा है? गिलहरियाँ आपको क्यों घूरती हैं? क्योंकि वे यह स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या आप उनके लिए खतरा हैं। वे इस बारे में उत्सुक हैं कि आप क्या कर रहे हैं। हम इंसानों की तरह हमेशा जिज्ञासु रहते हैं। तो जीवन मूल रूप से वह भूत जहाज है जो हमें नहीं ले गया। वास्तव में हम उस जहाज को अपने कंधों पर उठाए बिना ले जा रहे हैं और डुबो रहे हैं। यह बिना खेने वाले के है। हमारे जीवन की संचालक लहरें हैं। तो, हमारे लिए करने को कुछ नहीं है, बस किनारे से इसे सलाम करना है। मझधार में कश्ती का अब इंतजार है। मैं भविष्य में एक स्वतंत्र व्यक्ति बनना चाहता हूं। एक ऐसा व्यक्ति जो किसी का गुलाम या बंधन में नहीं है। एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास खुद के अलावा कोई जिम्मेदारी नहीं है और जो एक नागरिक के रूप में राजनीतिक और नागरिक स्वतंत्रता का आनंद लेता है। वह व्यक्ति जिसे अपनी पसंद और नापसंद पर ध्यान देने का समय मिलता है। जिस पर लोग भी भरोसा कर सकें। ठीक वैसे ही जैसे उसने आप पर भरोसा किया था।सुबह आती है, रात जाती है। और हम समय को रोकने की कोशिश करते हैं। फिर भी, समय ऐसे ही चलता रहता है, कभी नहीं रुकता।
सब कहते यही जिंदा रहने की लड़ाई है। अब मेरे लिए यह विश्वास करना थोड़ा कठिन लगता है, कि इससे बेहतर कुछ भी हो सकता है। भला और बुरा क्या होना बाकी हैं।क्या मालूम ज़िन्दगी आगे अब क्या क्या दिखाएगी ?
बस एक ही सवाल दिल और ज़हन में उठता हैं ?अब और क्या? और कब तक ?
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