कोई नजरअंदाज करे तो, तब तो नज़र आना ही छोड़ जाये.. जब तलब तब आपको, मेरी ज़रुरत भी खत्म हो जाये.. मैंने जब एक बार भीड़ देखी, हुआ साफ़-जाहिर भीड़ में खोया मानव बन गए हम.. तलाशने पर भी जो नहीं दिखे, हम तो अब महज़ एक गुंजन बनकर रह गए.. हैरान परशन नहीं हुए तब भी, बस समझ लिए ऐसे जैसे—खेल मुकम्मल हो गए.. मैदान मे खेला खेल, और लोग मैदान खली छोड गए, अब जब जान चुके हैं हम, अपनी कीमत पहचान गए.. वे तो चले गए, वहीं दूसरी ओर हमें अपनी अहमियत बता गए.. सज़ा तो सुना दिया बिना कुसुर के, जाते जाते भी वो हमें ऐसा सबक सीखा गए. एहसास होगा तुमको एक दिन, कि तुमने पत्थर जमा करते-करते हीरा गवा दिए.. मीना
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